दिग्गज अर्थशास्त्री ने कहा कि इसके बजाय अधिक प्रतिस्पर्धा निजी पूंजीगत व्यय और उत्पादकता को बढ़ावा देगी और विकास को रफ्तारी देगी। इसके चलते कुशलता वाली ज्यादा नौकरियां भी पैदा होंगी और घरेलू खपत बढ़ेगी। उन्होंने कहा, 'और यही वह परिवर्तनकारी बदलाव है जिसकी भारत को इस समय जरूरत है। यह उसी चीज का एक संस्करण है जो 1990 और 2000 के दशक में हमारे लिए काम करती थी।'