दुमका । झारखंड के दुमका जिले में 2.27लाख बच्चे सरकारी स्कूलों में नामांकित है,लेकिन इनमें से 80 प्रतिशत बच्चों के पास इंटरनेट और मोबाइल की सुविधा नहीं है, जिससे वे आॅनलाइन क्लास करने से वंचित रह रहे है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए गांव-गांव के घर के बाहर ब्लैक बोर्ड बनाया गया है, जहां सोशल डिस्टेसिंग के तहत लाउडस्पीकर से पढ़ाई होती है। घर-घर में ब्लैक बोर्ड बनाने में स्थानीय प्रशसन, शिक्षकों और जनप्रतिनिधियों की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण रही है।
दुमका की डीसी राजेश्वरी बी ने कहा कि जिले के डूमरथर और जरमुंडी में घरों की दीवारें ब्लैकबोर्ड में बदल गयी है, क्योंकि लाॅकडाउन में शिक्षक मोबाइल और इंटरनेट सुविधा से वंचित बच्चों को उनकी चैखट तक शिक्षा उपलब्ध कराने पहुंच रहे है। उन्होंने बताया कि इस काम में बच्चों के माता-पिता और शिक्षक के अलावा पूरे समाज का सहयोग मिल रहा है।
दुमका के शिक्षा अधीक्षक ने कहा कि घर की दीवारों को ब्लैक बोर्ड में बदलने का यह विचार एक शिक्षक श्याम किशोर सिंह गांधी से आया, जिन्होंने अप्रैल में लाउडस्पीकर के माध्यम से अपने छात्रों को पढ़ाना शुरू किया। उन्होंने बताया कि वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमणकाल के दौरान जब स्कूल बंद कर दिए गए थे। गांधी ने एक टीम बनाई और लाउडस्पीकर के माध्यम से अपने छात्र-छात्राओं को बांकाथी ब्लॉक में पढ़ाना शुरू किया। इस पठन कार्य की काफी सराहना हुई और अच्छी प्रतिक्रिया मिली। अगस्त महीने में जब जिला प्रशासन की बैठक हुई, तो प्रशासन पूरे जिले में गांधी मॉडल का अनुकरण करना चाहता था।
दुमका जिले के डुमथर गांव में उनके उत्क्रमित मध्य विद्यालय के 295 छात्रों को महामारी के कारण इसी तरह से पढ़ाया जा रहा है। स्कूल को यह कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि उसके 80 प्रतिशत से अधिक आदिवासी छात्र ऐसे क्षेत्रों से आते हैं, जिनके पास मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है। स्कूल के प्रिंसिपल सपन कुमार खुद हाथ में लाउडस्पीकर लेकर बच्चों को आवश्यक दिशा-निर्देश देखते नजर आते है। वहीं 12वर्षीय शैलेन टुडू समेत अन्य बच्चे अपने घर के बाहर बने ब्लैकबोर्ड में गणित की समस्याओं का हल करते नजर आते है या फिर अन्य विषयों को लेकर होमवर्क पूरा करते नजर आते है।
बताया गया है कि दुमका के सरकारी स्कूलों में 2.27लाख बच्चों का नामांकन है, लेकिन इनमें से केवल 45 हजार बच्चों तक ही दैनिक सामग्री की पहुंच संभव है, वैसी स्थिति में मुहल्ले की कक्षा के माध्यम से बच्चो के भविष्य को संवारने का प्रयास किया जा रहा है। जिला प्रशासन ने 450 शैडो जोन , यानी कम मोबाइल कनेक्टिविटी वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया है और 12,900 छात्रों को पढ़ा रहा है। सामाजिक गड़बड़ी, मुखौटे, लाउडस्पीकर, ब्लैकबोर्ड और कुछ स्वयंसेवकों के साथ, दुमका के विभिन्न गांवों में शिक्षकों ने यह सुनिश्चित किया है कि उनके बच्चों को शिक्ष्ज्ञा मिल सकी।
इस काम में स्थानीय लोगों का शिक्षकों को पूरा सहयोग मिल रहा है, दुमका के महुआ गांव में, मुन्ना भंडारी दैनिक कामों में मदद करती हैं और अन्य शिक्षकों की सहायता करती हैं। वहीं जमशेदपुर के एक स्नातक स्नातक भंडारी को तालाबंदी के कारण अपने गाँव लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने कहा कि इस महामारी ने उसे उनके गाँव के बच्चों के नजदीक लाने का अवसर दिया। उन्हें सशक्त बनाना अच्छा लगता है। स्थानीय स्कूल के पिं्रसिपल तपन कुमार दास का कहना है कि कक्षा 3 से 8 तक शिक्षक और स्वयंसेवक उन्हें पढ़ाते हैं। एक समूह को विभिन्न उप-समूहों में विभाजित किया जाता है जो इन स्वयंसेवकों द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं। वे बहुत मदद करते हैं।