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मनमोहन सिंह का वो विदेशी बैंक खाता... लिफाफे की रकम जो दुनिया से छुपी रह गई!

Updated on 28-12-2024 01:29 PM
नई दिल्ली: साल था 1991। मनमोहन सिंह तब वित्त मंत्री थे। उनके पास एक विदेशी बैंक खाता था। इसमें उनके विदेश में काम करने के दौरान अर्जित आय जमा थी। उसी साल रुपये का अवमूल्यन होने के बाद खाते में जमा रकम का मूल्‍य बढ़ गया था। बढ़े हुए मूल्य को उन्‍होंने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (PMNRF) में जमा करवा दिया था। रुपये के अवमूल्यन का मतलब था कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपये की कीमत कम हो गई थी। इसके कारण डॉ. सिंह के विदेशी खाते में जमा राशि का मूल्य रुपये में बढ़ गया था।
जुलाई, 1991 में भारतीय मुद्रा का अवमूल्यन किए जाने के बाद उनकी इस बचत का मूल्य रुपये के संदर्भ में बढ़ गया था। ऐसी स्थिति में पीवी नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने इस लाभ को अपने पास रखने के बजाय उसे प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में जमा करवा दिया था।

निजी सचिव रहे रामू दामोदरन ने याद की वो घटना

तत्कालीन प्रधानमंत्री के निजी सचिव रहे रामू दामोदरन ने उस घटना को याद करते हुए कहा कि रुपये के अवमूल्यन के फैसले के तुरंत बाद डॉ सिंह प्रधानमंत्री कार्यालय गए थे। उन्होंने उस घटना को याद करते हुए कहा कि वह अपनी कार से सीधे प्रधानमंत्री के कमरे में चले गए थे। लेकिन, बाहर निकलते समय उन्होंने अपना रास्ता बदल लिया।
दामोदरन ने कहा, 'शायद अवमूल्यन के कुछ दिन बाद वह एक बैठक के लिए आए थे। बाहर निकलते समय उन्होंने मुझे एक छोटा लिफाफा दिया और मुझसे इसे प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय राहत कोष में जमा करने के लिए कहा।'

उस लिफाफे में 'एक बड़ी राशि' का चेक था। उन्होंने कहा, 'मुझे याद नहीं है कि चेक में कितनी राशि का उल्लेख किया गया था, लेकिन यह एक बड़ी राशि थी। सिंह ने अपनी इच्छा से ऐसा किया।'

फिलहाल संयुक्त राष्ट्र में ‘यूनिवर्सिटी ऑफ पीस’ के स्थायी पर्यवेक्षक के रूप में तैनात दामोदरन ने बताया कि जब सिंह विदेश में काम करते थे तो उनका एक विदेशी बैंक खाता था। सिंह ने 1987 से 1990 के बीच जिनेवा मुख्यालय वाले एक स्वतंत्र आर्थिक शोध संस्थान साउथ कमीशन के महासचिव के रूप में कार्य किया था।

चुपचाप जमा कर द‍िया था पैसा

डॉ सिंह 1991 में बनी नरसिम्ह राव सरकार में वित्त मंत्री के तौर पर शामिल हुए थे। उस सरकार ने रुपये में नौ फीसदी और 11 फीसदी के दो अवमूल्यन किए थे। यह फैसला वित्तीय संकट को टालने के लिए किया गया था।

अवमूल्यन का मतलब है कि प्रत्येक अमेरिकी डॉलर या किसी अन्य विदेशी मुद्रा और विदेशी परिसंपत्तियों को भारतीय रुपये में बदलने पर अधिक मूल्य मिलेगा।

वर्ष 1991 से 1994 तक प्रधानमंत्री कार्यालय में सेवा देने वाले आईएफएस अधिकारी दामोदरन ने कहा कि डॉ सिंह ने विदेशी बैंक खाते में लाभ को जमा करने को समझदारी भरा कदम समझा।

उन्होंने कहा, 'डॉ सिंह ने इसका प्रचार नहीं किया, बस चुपचाप जमा कर दिया। मुझे यकीन है कि उन्होंने बाद में प्रधानमंत्री को इसके बारे में बताया होगा लेकिन उन्होंने कभी इस बारे में कोई बड़ी बात नहीं की।'

वर्ष 2004-14 तक लगातार 10 साल देश के प्रधानमंत्री रहे डॉ सिंह का गुरुवार रात को 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया।

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