आज यानी 28 दिसंबर को भारत के 2 बड़े बिजनेस टायकून्स का जन्मदिन है। रतन टाटा... एक ऐसी शख्सियत जिन्होंने उन्हें सौंपी गई विरासत को एक नए मुकाम पर पहुंचाया। मिडल क्लास के लिए देश की सबसे सस्ती कार बनाई, तो वहीं विदेशी कंपनी फोर्ड के लग्जरी कार ब्रांड लैंडरोवर और जगुआर को पोर्टफोलियो में जोड़ा। आज उनका 87वां जन्मदिन है। वहीं धीरूभाई अंबानी का ये 92वां जन्मदिन है। उन्होंने कपड़े के कारोबार से एक ऐसी कंपनी खड़ी की जिसका सफर एनर्जी, रिटेल से लेकर मीडिया-एंटरटेनमेंट और डिजिटल सर्विस में फैल गया है। ये कंपनियां सुबह के नाश्ते से रात के सोने तक आम जिंदगी का हिस्सा हैं।
1. इंडिका: 30 दिसंबर 1998 में लॉन्च हुई थी भारत की पहली स्वदेशी कार
भारत की पहली स्वदेशी कार टाटा इंडिका 30 दिसंबर 1998 में लॉन्च हुई थी। यह कार रतन टाटा की लीडरशिप में डेवलप की गई थी, जो उनके इंडियन मार्केट के लिए एक अफोर्डेबल और पैसेंजर एफिशिएंट कार बनाने के सपने का हिस्सा थी। हालांकि, शुरू में लॉन्च किए गए मॉडल में कुछ मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट थे। ऐसे में टाटा ने अधिकारियों की एक मीटिंग बुलाकर, सॉल्यूशन पर काम करना शुरू किया। शॉर्ट टर्म के लिए, यह फैसला लिया गया कि कंपनी कंट्रीवाइड कस्टमर कैंप्स लगाकर सभी ख़राब हिस्सों को बदलेगी।
इस पर भारी भरकम 500 करोड़ रुपए खर्च किए गए। इसके साथ ही, इंजीनियर्स ने मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट को दूर करने पर काम शुरू किया और 2001 में इंडिका V2 लान्च की। यह भारतीय इतिहास की सबसे सफल कारों में से एक बन गई। कंपनी ने इस कार का प्रोडक्शन 2018 में बंद कर दिया।
2. नैनो: बारिश में भीगते परिवार को देखकर बना दी लखटकिया कार
एक इंटरव्यू में रतन टाटा से पूछा गया कि एक लाख रुपए की कार बनाने का आइडिया उन्हें कहां से आया। उन्होंने कहा, 'मैं बहुत से भारतीय परिवारों को स्कूटर पर सवारी करते देखता था। लोग स्कूटर से चलते थे, उनके आगे एक बच्चा खड़ा होता था, पीछे पत्नी बच्चे को बांहों में लिए बारिश में भीगी फिसलन वाली सडकों पर सफर करती थीं। हादसे का खतरा होता था। मैंने सोचा कि ये एक परिवार के लिए कितना खतरनाक सफर है। क्या हम ऐसे परिवारों को एक सुरक्षित सवारी दे सकते हैं। इसके बाद हमने एक नई छोटी एक लाख रुपए की कार बनाने का फैसला किया।'
हालांकि, ये इतना आसान नहीं था। 18 मई 2006 को रतन टाटा ने ऐलान किया कि वे पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के सिंगूर में टाटा नैनो कार का प्लांट लगाएंगे। तब पश्चिम बंगाल में CM बुद्धदेब भट्टाचार्य की अगुआई वाली लेफ्ट की सरकार थी। विपक्ष में थीं ममता बनर्जी।
बुद्धदेब ने नैनो प्रोजेक्ट का स्वागत किया, लेकिन ममता प्रोजेक्ट के लिए जमीनों के अधिग्रहण के विरोध में धरने पर बैठ गईं। ममता की भूख हड़ताल 24 दिन चली। एक हजार एकड़ जमीन अधिगृहीत की जा चुकी थी, लेकिन विरोध के चलते काम शुरू नहीं हो पाया।
3 अक्टूबर 2008 को रतन टाटा को ऐलान करना पड़ा कि वह नैनो का प्लांट सिंगूर से कहीं और ले जाएंगे। इसके बाद नरेंद्र मोदी ने रतन टाटा का गुजरात में स्वागत किया। उन्होंने 3.5 लाख रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से टाटा को प्लांट लगाने के लिए 1100 एकड़ जमीन ऑफर की।
कुछ ही दिनों में गुजरात के सानंद प्लांट पर नैनो नाम की लखटकिया कार बनकर तैयार हो गई। 10 जनवरी 2008 को दिल्ली के ऑटो एक्सपो में इसे लॉन्च किया गया, इसके बेस मॉडल की कीमत करीब 1 लाख रुपए रखी गई। सेल्स गिरने के बाद 2019 में इसे बंद कर दिया गया।
3. एका: भारत का पहला सुपर कंप्यूटर
भारत के पहले सुपर कंप्यूटर 'एका' (EKA) को टाटा संस की सहायक कंपनी कम्प्यूटेशनल रिसर्च लेबोरेटरीज (CRL) ने 2007 में डेवलप किया था। यह भारत में हाई परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। 'एका' संस्कृत शब्द है, जिसका मतलब 'एक' है।
एका सुपर कंप्यूटर के डेवलपमेंट में रतन टाटा सीधे तौर पर शामिल नहीं थे, लेकिन टाटा ग्रुप के चेयरमैन के रूप में उनकी सोच और विजन ने इस प्रोजेक्ट को हकीकत बनाने में अहम भूमिका निभाई। रतन टाटा हमेशा भारत को टेक्नोलॉजिकली सेल्फ रिलायंट बनाने के पक्ष में थे।
सुपर कंप्यूटर जैसे एडवांस टेक्नोलॉजी प्रोजेक्ट को बढ़ावा देकर उन्होंने भारत को हाई परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग (HPC) में ग्लोबल स्टेज पर खड़ा करने का प्रयास किया। रतन टाटा के ग्लोवल विजन ने 'एका' को सिर्फ एक नेशनल प्रोजेक्ट तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे इंटरनेशनली कॉम्पिटेटिव बनाया। 2007 में इसे दुनिया के टॉप 500 सुपर कंप्यूटरों में चौथे स्थान पर रखा गया, जो भारत के लिए गर्व का क्षण था।