भोपाल खाद्य पदार्थों में मिलावट को पकडऩे और रोकने के लिए करीब डेढ़ साल पहले राज्य सरकार ने शुद्ध के लिए युद्ध अभियान शुरू किया था, ताकि आम जनता को सही और गुणवत्तायुक्त खाद्य पदार्थ मिल सके। मिलावटखोरों को पकडऩे के लिए खाद्य और औषधि प्रशासन (एफडीए) ने युद्ध स्तर पर छापामार कार्रवाई की, लेकिन एक साल से शुद्ध के लिए युद्ध पर विराम लग गया है। सरकार की प्राथमिकता का पता इस बात से चलता है कि भोपाल की शासकीय प्रयोगशाला में प्रदेश के विभिन्न जिलों के करीब छह हजार नमूनों को एक साल से जांच का इंतजार है। इनमें घी, दूध, मावा, मिठाई, मसाले, ड्राय फ्रूट आदि के नमूने शामिल हैं। जब तक नमूनों की जांच नहीं हो पाएगी, कैसे पता चल पाएगा कि उनमें क्या और कितनी मिलावट है। इंदौर में हाल ही में नकली घी बनाने का कारखाना पकड़ाने से यह साबित होता है कि मिलावटखोर अब भी सक्रिय हैं।
सरकार और मंत्री भी भूले अपना संकल्प
प्रदेश सरकार ने जब शुद्ध के लिए युद्ध अभियान शुरू किया था, तब तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट इस अभियान के अगुआ थे। तब उन्होंने घोषणा की थी कि यह कार्रवाई सालभर चलती रहेगी। मिलावटखोरों को जेल भेजेंगे और रासुका भी लगाएंगे। कुछ आरोपितों के खिलाफ यह कार्रवाई हुई भी, लेकिन प्रदेश की कमल नाथ सरकार बदलने के साथ ही इस युद्ध पर विराम-सा लग गया है। उस समय के स्वास्थ्य मंत्री अब भाजपा सरकार में जल संसाधन मंत्री हैं, पर लगता है इंदौर के प्रभारी मंत्री होने के बावजूद नई सरकार में वे इस अभियान को भूल चुके हैं।
इनका कहना है
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआइ) से पिछले साल हमें 10 हजार नमूने जांचने का लक्ष्य दिया गया था। इसके मुकाबले मध्यप्रदेश ने 16600 नमूने लिए थे जो देशभर में सर्वाधिक थे। इसमें से 10 हजार नमूनों की रिपोर्ट हम दे चुके हैं और लगातार नए नमूने भी आते जा रहे हैं। भोपाल में एक ही लैब पर अधिक बोझ है। एफएसएसएआइ से अनुरोध किया है कि सहयोग करें और अन्य अधिसूचित लैब में जांच की अनुमति दी जाए।