अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रविवार को पनामा नहर को फिर से अमेरिकी कंट्रोल में लेने की धमकी दी है। ये नहर कैरेबियन देश पनामा का हिस्सा है। इस नहर पर 1999 तक अमेरिका का कंट्रोल था।
ट्रम्प ने कहा कि इस नहर का इस्तेमाल करने के लिए पनामा, अमेरिका से अधिक शुल्क ले रहा है। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि नहर पर चीन अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। अमेरिकी राज्य एरिजोना में समर्थकों की एक रैली को संबोधित करते हुए ट्रम्प ने कहा कि वह नहर को गलत हाथों में नहीं जाने देंगे।
रैली के बाद ट्रम्प ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक AI जनरेटेड तस्वीर भी पोस्ट की। इस तस्वीर में पनामा नहर के बीच में अमेरिकी झंडा लगा हुआ दिख रहा है। तस्वीर के कैप्शन में ट्रम्प ने 'वेलकम टु द यूनाइटेड स्टेट्स कैनाल' लिखा था। इसका मतलब है संयुक्त राज्य की नहर पर आपका स्वागत है।
पनामा के राष्ट्रपति ने ट्रम्प को फटकार लगाई
ट्रम्प की धमकी पर पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने उन्हें कड़ी फटकार लगाई है। मुलिनो ने रविवार को एक रिकॉर्डेड संदेश में कहा कि पनामा की स्वतंत्रता से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उन्होंने ट्रम्प के आरोपों को खारिज करते हुए नहर पर चीन के प्रभाव को इनकार किया।
मुलिनो ने कहा कि पनामा नहर के कैरेबियन और प्रशांत महासागर की तरफ खुलने वाले दो पोर्ट के गेट्स का मैनेजमेंट सीके हचिसन होल्डिंग्स की एक सहायक कंपनी करती है। यह कंपनी हांगकांग में स्थित है, इस पर चीन का कोई नियंत्रण नहीं है।
मुलिनो ने आगे कहा कि पनामा नहर और उसके आस-पास की एक-एक इंच जमीन पनामा की है और ये आगे भी पनामा की ही रहेगी। मुलिनो के इस बयान का जवाब देते हुए ट्रम्प ने कहा कि हम इस बारे में आगे सोचेंगे।
क्यों खास है पनामा नहर
पनामा नहर नॉर्थ और साउथ अमेरिका के बीच स्थित है। यह दोनों महाद्वीपों को अलग करने का काम करती है। इसके साथ ही यह अटलांटिक और प्रशांत महासागर के बीच की दूरी को कम कर देती है। इस नहर के निर्माण से पहले अमेरिका के पश्चिमी तट से पूर्वी तट तक जाने वाले जहाजों को हजारों समुद्री मील का रास्ता तय करके, केप हॉर्न से होते हुए साउथ अमेरिका का चक्कर लगाना पड़ता था।
नहर के निर्माण के बाद जहाजों का ये हजारों मील का सफर कम हो गया। जहाज सीधे प्रशांत महासागर से पनामा नहर के जरिए अटलांटिक महासागर में पहुंच जाते हैं। इससे कार्गो ट्रांसपोर्ट करने में लगने वाला समय, फ्यूल और शिपिंग कॉस्ट में कमी आती है।
जहाजों को ट्रांजिट करने के बदले पनामा उनसे शुल्क लेता है। ये नहर, पनामा की राष्ट्रीय आय का एक अहम स्रोत है।
कैसै बनी पनामा नहर
पनामा में नहर का बनाने का विचार 16वीं सदी की शुरुआत में आया था। हालांकि इसके लिए प्रयास 19वींं सदी के अंत में शुरु हुए। इस दौरान पनामा पर कोलंबिया का राज था। 1881 में फ्रांस ने कोलंबिया के साथ मिलकर पनामा नहर को बनाने का काम शुरू किया। इस काम के लिए फ्रांस ने इंजीनियर फर्डिनैंड डी लेसेप्स को चुना। उन्होंने इससे पहले मिस्र में स्वेज नहर का निर्माण किया था।
हालांकि 8 साल बाद ही इंजीनियरिंग में आ रही चुुनौतियों, वर्कर्स में फैलने वाली बीमारियों और फंड की कमी के चलते फ्रांस को 1889 में नहर का निर्माण रोकना पड़ा।
1903 में पनामा को कोलंबिया से आजादी मिली। इसके बाद 1904 में अमेरिका ने फ्रांस की संपत्तियों को खरीदकर नहर का निर्माण की जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली। अमेरिका बेहतर इंजीनियरिंग का इस्तेमाल करने के साथ-साथ, बीमारियों को कंट्रोल करने पर भी ध्यान दिया। दूसरी तरफ अमेरिका के फंड की कमी भी नहीं थी।
15 अगस्त 1914 को नहर को आधिकारिक तौर पर चालू किया गया। इसे अमेरिकी इंजीनियरिंग का सर्वोत्तम उदाहरण माना जाता है। इसे बनाने के दौरान लगभग 38 हजार अमेरिकी मजदूरों की मौत हुई थी। इसे बनाने में उस समय 37.5 करोड़ डॉलर का खर्च हुए थे।
अगले 63 सालों तक अमेरिका का इस नहर पर पूरी तरह कंट्रोल रहा। 1977 में अमेरिका और पनामा के बीच संधि हुई, जिसके बाद इस नहर पर दोनों देशों का संयुक्त नियंत्रण हो गया। इसके बाद अमेरिका ने 31 दिसंबर 1999 को पूरी तरह से नहर को पनामा को सौंप दिया।