दुनिया में हर वर्ष एक अरब बच्चे होते हैं, शारीरिक मानसिक हिंसा के शिकार
Updated on
21-06-2020 06:09 PM
न्यूयॉर्क । संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है, कि दुनिया में कुल बच्चों की आधी आबादी हर वर्ष शारीरिक, यौन और मनोवैज्ञानिक हिंसा का शिकार होती है। संख्या की बात करें तब ये करीब एक अरब है। इसकी वजह बच्चों की सुरक्षा को लेकर बनी नीतियों का विफल होना बताया है। यूएन के मुताबिक ये फ्रेमवर्क बच्चों के खिलाफ होने वाली हिंसा और उनकी रोकथाम को बने सात अहम बिंदुओं का दस्तावेज है। इस रिपोर्ट को विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन और बच्चों के खिलाफ हिंसा के खत्म करने के लिए बने विशेष यूएन प्रतिनिधि ने संयुक्त रूप से तैयार किया है। इसमें कहा गया है कि वैसे लगभग सभी देशों में नाबालिगों के संरक्षण के लिए कानून बने हैं, लेकिन आधे से भी कम देश उन्हें कड़ाई से लागू करते हैं। इन नियमों की सच्चाई की यदि बात की जाए तो करीब 88 फीसद देशों ने बच्चों की सुरक्षा को कानून बनाए हैं लेकिन इन्हें कड़ाई से केवल 47 फीसद देशों में ही लागू किया गया है। यूएन की इस रिपोर्ट में दर्ज ये आंकड़ा वास्तव में काफी डराने और चौंकाने वाला है।
रिपोर्ट के बाबत विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख डॉक्टर टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस का कहना है कि बच्चों का कल्याण और उनके स्वास्थ्य की रक्षा हमारे सामूहिक स्वास्थ्य और कल्याण के लिए नितांत जरूरी है। उनके मुताबिक बच्चों के खिलाफ होने वाली हिंसाओं के लिए किसी भी कारण को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने इस बात पर भी बेहद नाराजगी जाहिर की कि ऐसा तब होता है, जब हमारे पास इसकी रोकथाम के सभी उपाय मौजूद हैं। उन्होंने उन सभी देशों से जहां पर बच्चों की सुरक्षा के कानून बने होने के बावजूद इन्हें कड़ाई से लागू नहीं किया जा सका है,अपील की कि वे इनका इस्तेमाल करें। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में वर्तमान में चल रहे कोविड-19 महामारी के संकट की वजह से स्कूलों को बंदकर बच्चों की आवाजाही को प्रतिबंधित किया गया है। बच्चों के खिलाफ हिंसा पर यूनीसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फोर ने भी काफी दुख व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इन मुश्किल हालात में अनेक बच्चे हैं जो उन लोगों के साथ रहने को मजबूर हैं जिन्होंने उनके साथ दुर्व्यवहार किया है। इसलिए ये बेहद जरूरी है कि इस समय और उसके बाद भी बच्चों को सुरक्षा देने के प्रयासों का दायरा बढ़ाया जाए। इसके लिए हैल्पलाइन और निर्धारित सामाजिक सेवाकर्मियों को आवश्यक सेवाओं में शामिल करना होगा।
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