मुंबई । वित्त
वर्ष 2019-20 में बैंकों
और वित्त संस्थानों
द्वारा रिपोर्ट किए गए
एक लाख रुपए
और इससे अधिक
की धोखाधड़ी के
मामले में संख्या
के लिहाज से
28 प्रतिशत और मूल्य
के हिसाब से
159 प्रतिशत की वृद्धि
हुई है। रिजर्व
बैंक द्वारा जारी
वार्षिक रिपोर्ट में यह
खुलासा किया गया
है। रिजर्व बैंक
ने कहा है
कि पिछले वित्त
वर्ष में बैंकों
और वित्तीय संस्थानों
में धोखाधड़ी होने
और उसका पता
चलने का औसत
समय दो साल
रहा। वहीं 100 करोड़
रुपए से अधिक
की धोखाधड़ी होने
के मामले में
यह समय कहीं
ज्यादा रहा है।
हालांकि धोखाधड़ी के इन
मामलों के होने
की तिथियां पिछले
कई सालों के
दौरान की रही
हैं। रिजर्व बैंक
ने एक लाख
रुपए और इससे
अधिक की धोखाधड़ी
के आंकड़े बताते
हुए कहा कि
2019- 20 में कुल 8,707 धोखाधड़ी का
पता चला, जिसमें
1,85,644 करोड़ रुपए की
राशि लिप्त रही।
वहीं इससे पिछले
साल इस प्रकार
की 6,799 धोखाधड़ी के मामलों
में 71,543 करोड़ रुपए की
राशि की ही
गड़बड़ी हुई।
चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से जून अवधि के दौरान 28,843 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के 1,558 मामले सामने आए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 100 करोड़ रुपए से अधिक की धोखाधड़ी के मामलों में औसतन 63 महीने में पता चला है। इनमें कई मामले तो पिछले कई साल पहले के हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंकों द्वारा अग्रिम चेतावनी संकेत (ईडब्ल्यूएस) पर ठीक से अमल नहीं करने, आंतरिक आडिट के समय ईडब्ल्यूएस का पता नहीं चलने, फारेंसिंक जांच के दौरान कर्ज लेनदार का सहयोग नहीं मिलना, अधूरी आडिट रिपोर्ट और संयुक्त कर्जदाताओं की बैठक में फैसले नहीं ले पाना जैसे कई मुद्दे हैं जिनकी वजह से समय रहते धोखाधड़ी का पता नहीं चल पाता है।