भोपाल। मध्यप्रदेश में तेजी से बदल रहे राजनीति का असर पुरानी सरकार के प्रस्तावों पर भी पड़ रहा है। यही वजह है कि अपने फायदे के लिए कांग्रेस की नाथ सरकार द्वारा प्रदेश में मैहर, चाचौड़ा और नागदा को जिला बनाने का तैयार किया प्रस्ताव अब पलट दिया गया है। इन तीनों ही कस्बों को जिला बनाने से शिव सरकार ने हाथ खींच लिए हैं। दरअसल यह फैसला उस समय किया गया था, जब नाथ सरकार पूरी तरह से अल्पमत में आ चुकी थी। उस समय सरकार बचाने की कवायद और संबंधित इलाकों के माननीयों की मांग पर यह फैसला किया गया था। यह फैसला मैहर के भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी, चाचौड़ा के कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह और नागदा के कांगे्रस विधायक दिलीप सिंह गुर्जर की मांग पर किया गया था। खास बात यह है कि चाचौड़ा को जिला बनाने की मांग को लेकर तो उस समय लक्ष्मण सिंह अपने भाई और पूर्व सीएम दिग्विजय के बंगले पर समर्थकों के साथ धरने तक पर बैठ गए थे। मार्च में जब कांग्रेस सरकार पर संकट गहराया तो आनन-फानन 18 मार्च की कैबिनेट बैठक में मैहर, चाचौड़ा और नागदा को जिला बनाने का प्रस्ताव स्वीकृत कर दिया गया। इन शहरों को जिला बनाने की कार्रवाई शुरु होती इसके पहले ही नाथ को सीएम पद से त्यागपत्र देना पड़ गया , जिससे सरकार गिर गई। अब शिव सरकार के इस फैसले से स्थानीय विधायकों की मेहनत और हसरतों पर पूरी तरह से पानी फिर गया है।
यह है वजह
इन तीनों ही कस्बों को जिला बनाने की मांग कई सालों से उठती रही है। इन तीनों शहरों को जिला बनाने के प्रस्ताव को पूर्ववर्ती कमलनाथ सरकार ने मंजूरी दी थी। अगर इन्हें जिला बनाया जाता तो इसका श्रेय कांग्रेस को मिलना तय था, जिससे उसे राजनीतिक फायदा मिलता। इसका फायदा उसे अगले चुनाव में पूरी तरह से मिलता। यह बात अलग है कि अब भाजपा की शिव सरकार भी उसी राह पर चल रही है। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने हाल में बागली को जिला बनाने की घोषणा की है। जल्द ही राजस्व विभाग नए जिले का गठन करने के लिए अधिसूचना जारी कर दावे-आपत्ति भी बुलाने जा रही है। इस पर सुनवाई करने के बाद इस दिशा में अंतिम कार्रवाई होगी।
अल्पमत की सरकार का बताया फैसला
राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के मुताबिक कमलनाथ सरकार ने जाते-जाते बहुत सारे फैसले असंवैधानिक तरीके से लोगों को उपकृत करने के लिए किए गए थे, जिसमें बहुत सी नियुक्तियां भी कर दी थीं। इसी कड़ी में तीन जिले बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई थी। उनका कहना है कि अल्पमत की सरकार इस प्रकार के फैसले नहीं कर सकती। कमलनाथ जी को 15 महीने में कभी जिलों की याद नहीं आई और न ही निगम-मंडलों में नियुक्तियों की याद आई। जब आप चला-चली की बेला में पहुंचे, तो इस प्रकार के असंवैधानिक निर्णय ले लिए।
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