सेमवाल या परिहार हो सकते हैं नियामक आयोग के अध्यक्ष
Updated on
08-07-2020 09:12 PM
भोपाल। बीते पांच माह से रिक्त चल रहे मप्र विद्युत नियामक आयोग को अब जल्द ही नया अध्यक्ष मिल सकता है। इसके चयन के लिए अब सरकार स्तर पर तैयारी शुरु कर दी गई है। इसकी वजह है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा जल्द ही अध्यक्ष के चयन के लिए बैठक के निर्देश दे दिए गए हैं। इस पद के लिए वैसे तो कई पूर्व नौकरशाह दावेदार हैं, लेकिन सूत्रों की माने तो सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी एसपीएस परिहार और विनोद सेमवाल सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं। इनमें 1986 बैच के आईएएस अफसर परिहार लंबे समय तक ऊर्जा विभाग का काम भी देख चुके हैं। सेमवाल पूर्व अपर मुख्य सचिव के पद पर रह चुके हैं। गौरतलब है कि विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष का पद जनवरी में देवराज बिरदी का कार्यकाल पूरा होने के बाद से खाली है। इस पद के लिए सरकार के पास कई आईएएस अफसरों सहित अन्य लोगगों द्वारा भी आवेदन दिए गए थे। यह आवेदन मंगाने की प्रक्रिया तत्कालीन कमलनाथ सरकार में पूरी की गई थी। उस समय सरकार की पसंद के चलते तत्कालीन मुख्य सचिव एसआर मोहंती को आयोग का अध्यक्ष बनाया जाना तय माना जा रहा था , लेकिन अध्यक्ष के चयन के लिए बैठक हो पाती उसके पहले ही नाथ सरकार गिर गई और आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति का मामला अटक गया। उल्लेखलीय है कि इस अध्यक्ष का कार्यकाल नियुक्ति से पांच वर्ष अथवा 65 वर्ष की आयु तक रहता है। अध्यक्ष को वेतन के रुप में सवा दो लाख रुपए का भुगतान किया जाता है इसके साथ ही आयोग की शर्त और नियमों के मुताबिक उन्हें दूसरे अन्य लाभ भी मिलते हैं।
जीवन पर्यांत सुविधाएं देने का प्रस्ताव अटका
आयोग अध्यक्ष पद पर मोहंती की नियुक्ति की तैयारी के बीच तत्कालीन नाथ सरकार ने आयोग के अध्यक्ष और भूसंपदा विनियामक प्राधिकरण (रेरा) अध्यक्ष को हाईकोर्ट के जस्टिस के समान जीवन पर्यंत सुविधाएं देने की तैयारी शुरु कर दी थी। इसके लिए फरवरी में हुई कैबिनेट बैठक में प्रस्ताव भी लाया गया था , लेकिन मंत्रियों के विरोध के चलते प्रस्ताव को रोक दिया गया था। उस समय कैबिनेट में इस प्रस्ताव पर चर्चा में तत्कालीन सामान्य प्रशासन मंत्री डॉ. गोविंद सिंह ने सवाल उठाते हुए कहा था कि आखिर उन्हें जीवन पर्यंत सुविधाएं क्यों दी जानी चाहिए? ऐसे तो फिर अन्य आयोगों की ओर से भी सुविधाएं मांगी जाने लगेंगी। इस तरह सुविधाएं देने पर हर महीने एक करोड़ रुपए का खर्च आएगा। कुछ अन्य मंत्रियों ने भी डॉ. सिंह का समर्थन किया था, इसके बाद इस प्रस्ताव को रोक दिया गया था।
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