वॉशिंगटन । अमेरिका में नई सरकार आने के साथ विदेश मंत्री के तौर पर ऐंटनी ब्लिंकेन की नियुक्ति ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी हलचल मचा दी है। खासकर ब्लिंकेन का भारत को लेकर जो रुख है, उससे पाकिस्तान के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है। ब्लिंकेन न सिर्फ आतंकवाद के मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाया है बल्कि भारत के साथ इस दिशा में अहम सहयोग पर जोर दिया है। पहले से एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से निकलने की जुगत में लगे पाकिस्तान के लिए ब्लिंकेन की नियुक्ति चुनौतीपूर्ण हो सकती है। दरअसल, पहले भी ब्लिंकेन ने सीमापार से होने वाले आतंकवाद के मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने कहा था कि भारत के रक्षा तंत्र के साथ काम करके उसे मजबूत बनाया जाएगा और आतंकवाद से लड़ने के लिए उसकी क्षमताओं को बढ़ाया जाएगा। उन्होंने कहा था कि दक्षिण एशिया या दुनिया के किसी और हिस्से में आतंकवाद बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। गौरतलब है कि पाकिस्तान एफएटीएफ (फाइनैंशल ऐक्शन टास्क फोर्स) की ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में उसके लिए दूसरे देशों का सहयोग और नरम रवैया बेहद अहम है। अगर वह ग्रे लिस्ट से बाहर आने में नाकामयाब रहता है तो उसकी पहले से चरमराई अर्थव्यवस्था गर्त में जा सकती है।
हालांकि इससे पहले डेप्युटी सेक्रटरी ऑफ स्टेट के तौर पर दिसंबर 2015 में ब्लिंकेन भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत की वकालत कर चुके हैं। ब्लिंकेन इस्लामाबाद में अफगानिस्तान में आयोजित कॉन्क्लेव में शामिल थे, जिसमें भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और उनके पाकिस्तानी समकक्ष सरताज अजीज ने बातचीत का ऐलान किया था। हालांकि, इसके बाद भारत पर पाकिस्तान के आतंकी हमले के कारण यह बातचीत कभी ठोस रूप नहीं ले सकी। वहीं अब भारत में नरेंद्र मोदी और अमेरिका में बाइडेन सरकार बनने से मौजूदा हालात में ब्लिंकेन अपने पुराने रुख पर कायम रहेंगे या नहीं, यह देखने वाली बात होगी। यह बात साफ है कि ब्लिंकेन के लिए भारत के साथ सहयोग अहम बिंदु है। उन्होंने वॉशिंगटन डीसी के हडसन इंस्टिट्यूट में कहा था कि भारत के साथ संबंध मजबूत करना प्राथमिकता रहेगी। यह इंडो-पैसिफिक के भविष्य के लिए और जैसी व्यवस्था हम चाहते हैं, उसके लिए यह जरूरी होगा। यह सही, स्थिर और लोकतांत्रिक है और बड़ी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए जरूरी है। यह हर रिपब्लिकन और डेमोक्रैट सरकार की प्राथमिकता रही है।
उन्होंने ओबामा प्रशासन में भारत को अमेरिका का अहम रक्षा सहयोगी बनाए जाने का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बाद नरेंद्र मोदी सरकार में भी इस दिशा में कदम उठाए गए हैं। इसके जरिए भारत के रक्षा उद्योग को मजबूत करने और दोनों देशों की कंपनियों के साथ काम कर अहम टेक्नॉलजी तैयार करने की कोशिश की गई। भारत और अमेरिका के संबंधों पर आयोजित एक पैनल डिस्कशन में ब्लिंकेन ने यूएन रिफॉर्म्स का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि बाइडेन प्रशासन में हम भारत के अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में अहम रोल निभाने की वकालत करेंगे। इसमें भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को स्थायी सीट दिलाना शामिल होगा। चीन की आक्रामक नीति के बारे में बात करते हुए ब्लिंकन ने कहा था कि भारत और अमेरिका के बीच एक आम चुनौती चीन है जो भारत के खिलाफ आर्थिक आक्रामक है और अपने आर्थिक प्रभुत्व के इस्तेमाल से दूसरों पर दबाव बनाता है। उन्होंने कहा कि बाइडेन लोकतंत्र को दोबारा खड़ा करने के लिए और भारत जैसे पार्टनर के साथ काम करेंगे। चीन का मजबूत स्थिति से सामना किया जाएगा और भारत इस कोशिश का अहम हिस्सा होगा।