नकली सूरज बनाने के करीब पहुंचा चीन, पहले चलकर भी पीछे रह गया अमेरिका, एक्सपर्ट्स ने जताई चिंता
Updated on
20-09-2024 02:28 PM
बीजिंग: न्यूक्लियर फ्यूजन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिससे सूर्य को शक्ति मिलती है। लंबे समय से 'नकली सूर्य' को क्लीन एनर्जी के लिए एक विकल्प के रूप में देखा जाता रहा है। चीन के शंघाई में एक साधारण सड़क पर एनर्जी सिंगुलैरिटी नाम का स्टार्ट-अप है, जो न्यूक्लियर फ्यूजन पर काम कर रहा है। इस तकनीक में आगे निकलने के लिए दुनिया भर में दौड़ चल रही है। कई देश इसमें कामयाब हो गए हैं, लेकिन लंबे समय तक ऊर्जा को बरकरार रख पाना मुश्किल है। अमेरिका और चीन इसमें प्रमुख हैं। लेकिन अमेरिकी कंपनियों और उद्योग इस बात को लेकर चिंतित हैं कि इस क्षेत्र में अमेरिका अपनी दशकों पुरानी बढ़ खो रहा है।
इसका सबसे बड़ा कारण है कि चीन में कई कंपनियां क्लीन एनर्जी में सामने आ गई हैं। फ्यूजन में महारत हासिल करना एक आकर्षण है, जो किसी भी देश को धन और वैश्विक प्रभाव प्रदान कर सकता है। इसके अतिरिक्त ऊर्जा का एक बड़ा भंडार मिलेगा। तेल या गैस को जलाने की तुलना में लगभग 40 लाख गुना अधिक ऊर्जा मिलती है। वहीं न्यूक्लियर फ्यूजन की तुलना में चार गुना ज्यादा ऊर्जा मिलती है। फ्यूजन एनर्जी ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने के लिए भी महत्वपूर्ण समाधान हो सकता है।
पानी की तरह पैसा खर्च कर रहा चीन
चीन की सरकार लगातार फ्यूजन एनर्जी के लिए पानी की तरह पैसा खर्च कर रही है। अमेरिकी ऊर्जा विभाग के फ्यूजन एनर्जी साइंसेज कार्यालय का नेतृत्व करने वाले जीन पॉल एलेन के मुताबिक चीनी सरकार हर साल 1 से डेढ़ बिलियन डॉलर निवेश कर रही है। इसकी तुलना में अमेरिका सिर्फ 800 मिलियन डॉलर खर्च कर रहा है।
चीन आगे निकला
दोनों देशो के प्राइवेट सेक्टर इसे लेकर आशा व्यक्त करते हैं। उनका मानना है कि भारी तकनीकी चुनौतियों के बावजूद 2030 तक फ्यूजन शक्ति से बिजली मिलने लगेगी। अमेरिका पहला देश था, जिसने 1950 के दशक से ही इस पर काम शुरू कर दिया था। फ्यूजन में चीन की एंट्री काफी देरी से हुई। 2015 के बाद से फ्यूजन में चीन के पेटेंट बढ़ने लगे। किसी भी अन्य देश की तुलना में यह काफी ज्यादा है। एनर्जी सिंगुलैरिटी सिर्फ एक उदाहरण है।
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