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चीफ जस्टिस ने भूमि अधिग्रहण को पैसले पर उठाए सवाल

Updated on 30-09-2020 12:09 AM

नई दिल्ली मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने भूमि अधिग्रहण मामले में आए संविधान पीठ के फैसले पर  मौखिक रूप से कहा कि भूमि अधिग्रहण कानून इंदौर डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम मनोहरलाल पर दिए गए फैसले में कुछ सवाल अनुत्तरित रह गए हैं। इन सवालों की जांच करने की दरकार है। कोर्ट ने इस फैसले में संविधान पीठ के सदस्य रहे जजों से भी राय मांगी है, साथ ही सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से भी कहा है कि इस मामले में मदद के लिए तैयार रहें। जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने यह फैसला इस वर्ष छह मार्च को दिया था। जस्टिस मिश्रा दो सितंबर को सेवानिवृत्त हो गए थे। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कहा कि फैसले में सरकार को ढिलाई दी गई है, जबकि संसद सरकार को यह ढिलाई नहीं देना चाहती थी। उन्होंने कहा कि सवाल यह है कि सरकार यदि मुआवजा नहीं देती है और जमीन का कब्जा ले लेती तो यह अधिग्रहण कब तक बना रहेगा। आखिर इसकी कितनी सीमा होगी। सरकार कब तक पैसा नहीं देगी और कब तक अधिग्रहण रहेगा। संसद ने इसके लिए पांच वर्ष की सीमा तय की थी। यदि कब्जा ले लिया गया है और मुआवजा नहीं दिया गया है या किसान ने नहीं उठाया है तो फैसला कहता है कि अधिग्रहण निरस्त नहीं होगा। सवाल यह है कि यदि मुआवजा नहीं उठाया गया है तो अधिग्रहण कब तक निरस्त नहीं होगा। क्या ये हमेशा अनंत काल तक के लिए बना रहेगा। यह मामला कोर्ट में तब उठा जब भूमि अधिग्रहण के मामले सुनवाई पर आए। मेहता ने कहा कि इन मुकदमों को रोका गया था, क्योंकि मामला संविधान पीठ को सौंप दिया गया था। 600 मामले सुप्रीम कोर्ट में ही लंबित हैं। चूंकि अब फैसला गया है इसलिए ये मामले संबद्ध हाईकोर्ट में भेज देने चाहिए, जो संविधान पीठ के फैसले में दी गई व्यवस्था के आलोक में निर्णय देंगे। सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जज अरुण मिश्रा की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच ने फैसला दिया था भूमि अधिग्रहण कानून, 1894 के तहत अधिग्रहीत भूमि का अधिग्रहण उस सूरत में निरस्त नहीं होगा, यदि सरकार ने जमीन का मुआवजा ट्रेजरी में जमा करवा दिया है, भले किसान ने उसे उठाया हो। 2013 के नए भूमि अधिग्रहण निष्पक्ष मुआवजा का अधिकार और पुनर्वास कानून की धारा 24(2) में व्यवस्था थी कि अधिग्रहीत भूमि का मुआवजा किसान यदि पांच साल तक नहीं उठाता है सरकार कब्जा नहीं लेती है या मामला कोर्ट में लंबित है, तो यह अधिग्रहण लैप्स हो जाएगा। तब सरकार को नए कानून से अधिग्रहण करना होगा और बाजार रेट पर मुआवजा देकर किसान को पुनर्वासित करना होगा।



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