भोपाल। प्रदेश की चंबल सेंचुरी वैसे तो डॉल्फिन के संरक्षण की वजह से प्रसिद्ध है, लेकिन अब इसकी प्रसिद्धि अवैध रेत खनन के मामले में अधिक हो रही है। इसकी वजह है कि इस सेंचुरी में दिन दुनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ता रेत माफिया का प्रभाव है। हालात यह हो गए हैं कि अवैध रेत खनन के दुष्प्रभाव के चलते यहां पर डॉल्फिन बढऩे की जगह कम होना शुरु हो गई हैं। यह डॉल्फिन संरक्षित प्लेटनिस्टा गेंगेटिका प्रजाति की हैं। यहां पर यह हालत तब है जबकि यहां पर रेत खनन पर सुप्रीम कोर्ट तक प्रतिबंध लगा चुकी है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक चार साल पहले 2016 में यहां पर 78 डॉल्फिन थी, जो जून 2020 आते-आते कम होकर 68 रह गई। बीते चार सालों में यहां पर कम होने वाली डॉल्फिनों की संख्या 10 तक पहुंच गई है। इस हालात ने स्थिति को चिंताजनक बना दिया है। इसमें भी खास बात यह है कि करीब 14 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में चंबल की वनस्पतियों और जलीय जीवों को बचाने के लिए अभ्यारण्य क्षेत्र में रेत का अवैध खनन पूरी तरह से रोकने के निर्देश दिए थे, लेकिन सरकार और प्रशासनिक अमले की लापरवाही के चलते यहां पर अब भी खुलेआम रेत खनन का काम जारी है। इसका दुष्प्रभाव डॉल्फिन के जीवन पर भी पड़ रहा है। कहा तो यह भी जाता है कि यहां पर सक्रिय रेत माफिया को प्रशासनिक और राजनीतिक संरक्षण रहता है।
सिर्फ यहीं है इस प्रजाति की डॉल्फिन
देहरादून स्थित वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक कमर कुरैशी चंबल की डॉल्फिन पर शोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यहां के अलावा प्रदेश में प्लेटनिस्टा गेंगेटिका प्रजाति की डॉल्फिन अन्य किसी भी नदी या सरोवर में नहीं पाई जाती है।
डॉल्फिन के काम होने की यह वजहें
चंबल में मछलियां पकडऩे के दौरान कई बार वे जाल में फंसकर दम तोड़ देती है।
नदी में धार्मिक गतिविधियां संचालित होने से भी उन पर असर पड़ता है।
नदी के पानी का अत्यधिक उपयोग और रेत खनन के कारण भी डॉल्फिन कम हो रही है।
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