ब्रिक्स पर लगेगा 100% टैरिफ! डोनाल्ड ट्रंप की धमकी के पीछे आखिर वजह क्या है
Updated on
02-12-2024 04:40 PM
नई दिल्ली: अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया TruthSocial पर एक धमकी जारी की। उन्होंने कहा, 'ब्रिक्स देश डॉलर से दूर जाने की कोशिश कर रहे हैं जबकि हम खड़े होकर देखते हैं, यह विचार अब खत्म हो चुका है। हमें इन देशों से यह प्रतिबद्धता चाहिए कि वे न तो नई ब्रिक्स करेंसी बनाएंगे, न ही शक्तिशाली अमेरिकी डॉलर की जगह किसी अन्य मुद्रा का समर्थन करेंगे। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें 100% टैरिफ का सामना करना पड़ेगा और उन्हें अद्भुत अमेरिकी अर्थव्यवस्था में बेचने को अलविदा कहने की उम्मीद करनी चाहिए।'
भारत ब्रिक्स का संस्थापक सदस्य है, जिसमें अब नौ सदस्य देश हैं। अमेरिकी डॉलर द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद से दुनिया की सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली करेंसी रही है। उससे पहले दुनिया में ब्रिटिश पाउंड की तूती बोलती थी। अधिकांश देश दो प्राथमिक उद्देश्यों के लिए डॉलर का उपयोग करते हैं। पहला विदेशी मुद्रा भंडार में रखने के लिए और व्यापार तथा अन्य वैश्विक लेनदेन के लिए। डॉलर आज भी दुनिया की सबसे पसंदीदा करेंसी है लेकिन इसका रुतबा धीरे-धीरे कम हो रहा है।
रिजर्व करेंसी क्या है
रिजर्व करेंसी एक विदेशी मुद्रा है जिसे केंद्रीय बैंक अपने देश के औपचारिक विदेशी मुद्रा भंडार के हिस्से के रूप में रखते हैं। खुले बाजार में करेंसीज की खरीद और बिक्री करके केंद्रीय बैंक अपने देश की मुद्रा के मूल्य को प्रभावित कर सकता है। इससे करेंसी में स्थिरता बनी रहती है और निवेशकों का विश्वास बने रह सकता है। अधिकांश देश अपने भंडार को बड़े और खुले वित्तीय बाजारों वाली मुद्रा में रखना चाहते हैं। वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जरूरत के समय वे इसका आसानी से यूज कर सकें। केंद्रीय बैंक अक्सर सरकारी बॉन्ड के रूप में मुद्रा रखते हैं जैसे कि अमेरिकी ट्रेजरी। अमेरिकी ट्रेजरी बाजार अब तक दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे अधिक लिक्विड बॉन्ड बाजार बना हुआ है। दुनिया के अधिकांश देशों के रिजर्व में डॉलर की बड़ी हिस्सेदारी है। साथ ही यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए पसंदीदा करेंसी बनी हुई है। तेल जैसी प्रमुख वस्तुओं को मुख्य रूप से अमेरिकी डॉलर का उपयोग करके खरीदा और बेचा जाता है। सऊदी अरब सहित कुछ प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं अब भी अपनी मुद्राओं को डॉलर से जोड़ती हैं।
डॉलर की उच्च मांग अमेरिका को कम लागत पर पैसा उधार लेने में सक्षम बनाती है। सरकार के बॉन्ड की ज्यादा मांग का मतलब है कि उसे खरीदारों को लुभाने के लिए उतना ब्याज नहीं देना पड़ता है। सा साथ ही यह भारी बाहरी ऋण की लागत को कम रखने में मदद करता है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह लाभ मामूली है। उनका कहना है कि अन्य विकसित देश भी इसी तरह कम दरों पर उधार लेने में सक्षम हैं। फेडरल रिजर्व के पूर्व चेयरमैन बेन बर्नानके ने तर्क दिया था कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमेरिका की घटती हिस्सेदारी और यूरो और येन जैसी अन्य मुद्राओं के बढ़ने से अमेरिका का लाभ कम हो गया है।
डॉलर की ताकत
वैश्विक भुगतान प्रणाली में डॉलर की प्रमुखता भी अमेरिकी वित्तीय प्रतिबंधों की ताकत को बढ़ाती है। अमेरिकी डॉलर में किया जाने वाला लगभग सभी व्यापार अमेरिकी प्रतिबंधों के अधीन हो सकता है। उन्हें फेडरल रिजर्व में खातों वाले तथाकथित करेंसपोंडेंट बैंकों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। डॉलर में लेन-देन करने की क्षमता को समाप्त करके, अमेरिका उन लोगों के लिए व्यापार करना मुश्किल बना सकता है जिन्हें उसने ब्लैकलिस्ट किया है। उदाहरण के लिए, 2022 में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के मद्देनजर अमेरिकी प्रतिबंधों ने रूस को डॉलर से अलग कर दिया, रूसी केंद्रीय बैंक की 300 अरब डॉलर की संपत्ति को फ्रीज कर दिया और देश के सॉवरेन डेट पर डिफॉल्ट को ट्रिगर किया। यदि डॉलर का उपयोग कम हो जाता है, तो अमेरिकी प्रतिबंधों की प्रभावशीलता भी कम हो जाएगी।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक अजय श्रीवास्तव कहते हैं, 'अमेरिका का इतिहास रहा है कि वह स्विफ्ट नेटवर्क जैसी वैश्विक वित्तीय प्रणालियों पर अपने प्रभाव का लाभ उठाकर एकतरफा प्रतिबंध लगाता रहा है। स्विफ्ट (द सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन) सुरक्षित और मानकीकृत अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय लेनदेन के लिए आवश्यक है। रूस और ईरान जैसे देशों को स्विफ्ट तक पहुंचने से रोककर अमेरिका ने वैश्विक वित्तीय बुनियादी ढांचे को प्रभावी रूप से हथियार बना लिया है। इससे अन्य देशों को वैध व्यापार जारी रखने के लिए वैकल्पिक भुगतान तंत्र खोजने के लिए मजबूर होना पड़ा है।'
उन्होंने कहा कि ट्रंप की धमकी वास्तविकता से परे है। इस पैमाने के टैरिफ घरेलू कीमतों को बढ़ाकर अमेरिकी उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचाएंगे और वैश्विक व्यापार को बाधित करेंगे। प्रमुख व्यापारिक भागीदार भी इसका बदला लेने के लिए कदम उठा सकते हैं। श्रीवास्तव कहते हैं, 'डॉलर से वैश्विक बदलाव आर्थिक विविधीकरण द्वारा संचालित एक जटिल प्रक्रिया है, जिसे आसानी से खतरों से रोका नहीं जा सकता।'
ब्रिक्स की करेंसी
हालांकि डॉलर अभी भी हावी है लेकिन अधिकांश अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में इसकी भूमिका को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। इसकी वजह यह है कि अन्य देशों के लिए 'डी-डॉलराइज' करने के लिए आर्थिक और भू-राजनीतिक प्रोत्साहन हैं। अप्रैल 2023 में ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन में ब्राजील के राष्ट्रपति लुई इनासियो लूला डी सिल्वा ने पूछा था, 'हम अपनी मुद्राओं के आधार पर व्यापार क्यों नहीं कर सकते?'
अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भारत डॉलर का उपयोग किए बिना रूस से तेल खरीद रहा है। चीन ने भी ऐसा ही किया है। लेकिन, ब्रिक्स मुद्रा विकसित करने का विचार अभी तक आकार नहीं ले पाया है। इसका मुख्य कारण यह है कि सदस्य देशों में संरचनात्मक चुनौतियां हैं। इनमें एक मजबूत केंद्रीय बैंक और मौद्रिक नीतियों की कमी शामिल है। वैश्विक भंडार में चीनी रेनमिनबी की हिस्सेदारी 2016 से तीन गुना यानी 1% से 3% बढ़ी है। ट्रंप के गुस्से के पीछे यह एक प्रमुख वजह हो सकती है।
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